बसंत बीत गइ सावन बीता बीता प्रीत का हर मौसम तेरे बीन अब बहार भी पतझड़ कहाँ छुपाऊ। बसंत बीत गइ सावन बीता बीता प्रीत का हर मौसम तेरे बीन अब बहार भी पतझड़ क...
निरन्तर इसके आभाव में विकल निरन्तर इसके आभाव में विकल
आँखों की धार सुनाने विकल हूँ मैं. आँखों की धार सुनाने विकल हूँ मैं.
इस भूल भुलैया सी दुनिया में इंसान नहीं मिल पाया है। इस भूल भुलैया सी दुनिया में इंसान नहीं मिल पाया है।
चल, उठ और भाग, कर किसी का इंतज़ार मत, तू एक इंसान है बन्दे, इतनी जल्दी हार मत। चल, उठ और भाग, कर किसी का इंतज़ार मत, तू एक इंसान है बन्दे, इतनी जल्दी हार मत।
विकल आत्मा कैसे पीतीं ? विष सांप सा रसते हो।। विकल आत्मा कैसे पीतीं ? विष सांप सा रसते हो।।