हार मत
हार मत
जीता चंद्रगुप्त, और जीता पृथ्वीराज था,
हार भी गये थे, तो उसका भी अंदाज था,
चंद पल के हैं, ये हार के मौसम तेरे,
घुप्प अंधरे हों, तब ही होते हैं सवेरे,
पल के झमेले में, अपना चेहरा उतार मत,
कोशिश जारी रख, इतनी जल्दी हार मतI
होंगे थोड़े कठिन, तेरे संघर्ष के पल,
रखना तुम हौसला, न होना विकल,
रसरी के निशान, तब गहरे होते हैं,
पत्थर पर चलके, नित सुनहरे होते हैं,
देखकर दुश्मन की सेना, डाल हथियार मत,
तू एक इंसान है बन्दे, इतनी जल्दी हार मत।
इबादतों का दौर, होगा चहु ओर लेके आस,
जब देखेंगे लोग, तेरा निरंतर-अथक प्रयास,
चल, उठ और भाग, कर किसी का इंतज़ार मत,
तू एक इंसान है बन्दे, इतनी जल्दी हार मत।