बड़का बेटा
बड़का बेटा
बड़का बेटा, बड़का बेटा,
यही रट लगाया करते थे,
मंदिर-मस्जिद, चर्च-गुरुद्वारा,
सौ दीप जलाया करते थे।
छोटी-छोटी अँगुलियों को थाम,
स्कूल जिसे छोड़ा सुबहो-शाम,
आज बड़े निर्मम होकर,
वृद्धाश्रम लेकर आया हैI
ना पढ़ सके थे आठ से ज्यादा,
इसलिए पढ़ाया बारह से ज्यादा,
मगर बड़का बेटा बदल गया,
अपनी शादी के दो दिन बादI
माँ रहती थी मंझले बेटे के साथ,
जब पता चला दौड़ी आई,
मंझला बेटा भी दौड़ा आया,
आंसू नयन में उसके भर आया।
बोला रो-रोकर पापा -पापा,
चलो मेरे घर, ज़रा न देर करो,
मेरे घर रहना, वहीं शाम-सवेर करो।
बड़का बेटा, बड़का बेटा,
बड़का बेटा, रटते थे,
आज मगर रोना आया,
प्यार जिसे ज्यादा दिया।
उसने पल में रुसवा कियाI।