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Deepak Kumar Shayarsir

Others

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Deepak Kumar Shayarsir

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एक अदना सा सिपाही

एक अदना सा सिपाही

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अजीब सी हस्ती है,

वो अदना सा सिपाही,

परिवार से लगाव है,

मगर समय हीं नहीं,

वो छुपा लेता है आंसू,

वो रक्षा बंधन, वो होली,

वो दशहरा, वो दिवाली,

बिछड़ा है वर्षों से जाने,


परिवार का वो दुलारा,

वो दोस्तों का प्यारा,

वो अदना सा सिपाही,

वो अदना सा सिपाही....


अजीब सी हस्ती है,

गरीब का बेटा,

छुटकी का भाई,

बाबू का भैया,


अजीब सी हस्ती है,

वो अदना सा सिपाही

कभी जिसे बैगन न भाता,

उसे अब वो चाव से खाता,

माँ से रोटियों की फरमाइश,

वो जिद्द करना पापा से,

नहीं कोई नफरत उसे,

किसी से घृणा नहीं,

वो मीलों पैदल चलता,

अब पैर अकड़ते भी,

मालिश कौन करता?


अब कपड़ों में मैल है,

पर बोलने वाले नहीं,

अब घंटों भूखा रहता,

कोई पूछता भी तो नहीं,

हाँ! मगर अब उसे,

घर वापस लौटना है..


उसी परिवार में,

एक प्यारे से परिवेश में,

जहाँ लगाव है,

जहाँ अपनों के लिए,

ढेर सारा समय है,


अजीब सी सरपरस्ती है,

वो अजीब सी हस्ती है,

एक अदना सा सिपाही,

एक अदना सा सिपाही I


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