STORYMIRROR

Ravi Purohit

Abstract

4  

Ravi Purohit

Abstract

रे मन ! चल कुछ सच जीते हैं

रे मन ! चल कुछ सच जीते हैं

1 min
335

रे मन ! चल आज

कुछ अपनों से मिलते हैं

देखते हैं तुझसे मिल कर

मुरझाते या खिलते हैं


खंगालते हैं उनकी यादें

कितना मरते या जीते हैं

भरते हैं दंभ जो मेरे होने का

मिल कर वे कितना बढते-घटते हैं


मासूम दिल के जज्बाती नासूर को

कितना अपने ढकते या छिलते हैं

मुझ बिन जीना मुहाल बताने वाले

जानें कितना बचते, कितना मिलते हैं ।


रे मन ! चल आज

कुछ अपनों से मिलते हैं

भरी जेब से मुस्काते

और फटी जेब को आंख दिखाते

बदलते रिश्तों को जीते हैं !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract