मन झूमे-करे मनुहार
मन झूमे-करे मनुहार
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प्रीत-सनी
अहसास अल्पना
दिल में राग-मल्हार,
साँसों का
दरवाजा खोले
पौरम-पौर मनुहार !
नील समंद-सी
गहरी आंखें
विरही मन-विहार,
अमरलता-सी
लिपटी प्रीति
धक-धक मन मनुहार !
देह है चरखा
भाव की पूणी
गड्डमड्ड लोक-व्यवहार,
नेह बावरा
पल-पल ताके
झूर-झूर मनुहार !
होठ मांडणे
स्वस्तिक दन्ति
प्रणय-शंख संस्कार,
पलकों में बदरा
करवट-ज्यों बिजली
देह-विरहन मनुहार !
सुनो रूपसी
ओ सुलक्षणा
तुझ बिन सूने सब घर-द्वार,
प्रीत पगलिये
अब तो कर दो
मन झूमे-करे मनुहार !