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Ravi Purohit

Abstract

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Ravi Purohit

Abstract

जी लेता हूं सदियां

जी लेता हूं सदियां

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धरा-सा

धैर्य,

अग्नि-सा

जीवट,

आसमां-सी

व्यापकता

और पानी-सी

पाकीजगी लेकर

आई थी मेरी जिंदगी में

और जाने कब

मेरी प्राण-वायु बन

अपने पंचभूति प्रेम से

रोम-रोम सरोबार कर दिया मेरा !


शरद-सी 

चांदनी,

तपत-सी

उदीप्त चाहत,

वर्षा-सी

ठंडक देकर

विषम के

पतझड़ को झाड़ 

यूँ ही

बसंत का 

मधुमास सदा बने रहना !


वेद की

ऋचा-सी,

पुराण की

कथा-सी,

गीता के


आख्यान-सी

मन के

व्याख्यान-सी

संगीत का

सरगम बन

यूँ ही 

प्रीत-वीणा का

आभास सदा बने रहना


आंख के

पानी-सी,

संस्कार की

कहानी-सी,

नदी की

जवानी-सी,

दिशाओं की

दीवानी-सी

यूँ ही 

नेह का

विश्वास सदा बने रहना !


सुनो साधना!

सुनो आराधना


पी लेना चाहता हूं

चांदनी की तरह

खामोशी में तुम्हें

जी लेना चाहता हूं

खुशबू की तरह

सर्वत्र तुम्हें


तुम्हारी 

मोहक मुस्कान 

लबों पर पसरते ही

मैं जी लेता हूँ सदियां 

पल-भर में जाने कितनी।


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