सुनो खुशबू !
सुनो खुशबू !
हिफाजत से
संभालना होगा
तुम्हें
इस पुष्प को
वरना यह पत्तियां बिखेर कर
खुशबू फैला देगा
और तब
चाहने वालों की भीड़
मुझ पर
अपहरण का आरोप लगा
टूट पड़े शायद
लबों पर रखूं
कि दिल में छुपाऊं
ए फूल ! तू ही बता,
कैसे तुझे बचाऊं
रखूं अगर
अमरलता की तरुणाई में
तो संस्कार बदल जायेंगे
तहखाने के तल घर भी
तेरी खुशबू
न दबा पायेंगs
बगिया में गर छोड़ूँ
तो भौंरे
मदहोश हो जायेंगे
ऐ खुशबू के मकरंद
तू बता
किस कैद में रखूं तुझे ?
तेरी महक ने
समूचे शहर में
विस्मय का
इंद्रधनुष बना दिया है मुझे,
जहां भी जाऊं
तुम्हारे तलबगारों की भीड़
उमड़ पड़ती है
मेरे पीछे
जैसे उत्पाती बच्चे
हो लिए हों
किसी पागल के पीछे,
होठों पर उनके
तेरी चाहत के
तराने बजते हैं !
ओ हवा !
ओ रोशनी !
ओ पानी के
लहरी तासीर वाले रंगरेज !!!
तू ही बता
कैसे सहेजूँ तुझे ?
यह सूरज भी
तेरा मुरीद हो गया
बावला
भूल गया अपनी गति,
अब इसे उजाला नहीं,
तेरी खुशबू की
चांदनी चाहिए
मंदिर का पुजारी भी
भूल गया है भक्ति
और टुकुर-टुकुर ताक रहा है
तुझे,
तुम्हारी
यह मोहक
खिल-खिल खुशबू
बिगाड़ न दे कहीं
शहर की आब-ओ-हवा
इसलिए
चूल्हे का धुँआ
और बेतरतीब पोषण ही ठीक है
सबके लिए।
हो सके तो
मुझे माफ़ कर देना
रे फूल
कि तुम्हारी खुशबू को
जबरन दफना रहा हूँ।