ओ मन बसंत
ओ मन बसंत
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तुम्हारे आने की
आहट पा
मुस्कुरा दिया दरवाजा,
हंसने लगी दीवारें,
खिलखिला पड़े
बेतरतीब बिखरे
मकड़ियों के जाले,
मरणासन्न,
मिच-मिच जाती
आँखों में
मानो अनायास
सूरज आ बैठा
और पूरा गवाड़
बसंत के
जयकारों से गूंज उठा
सुनो बसंत!
तुम्हारी पदचाप से
मन का बुढाता पेड़
देखो,
फिर हरा होने लगा ।