संतोष धन
संतोष धन
आमदनी से ज्यादा खर्च यदि हो
तो जेब फटी ही रह जाएगी
कितना भी तुम चाहे कमा लो
तो बरकत कहाँ रह पाएगी
चकाचौंध के इस दौर में जहाँ
हर कोई चमकना चाहता है
सुविधाओं का साजो सामाँ
सजाके बहुत इठलाता है
दिखावे की भेड़-चाल में यहाँ
चीजें जतन से सजाता है
किस्तें भरते-भरते ही वो सदा
जीवन किस्तों में बिताता है
फटी जेब को मध्यमवर्ग भी ना
बड़ी सफाई से छिपाता है
निम्नवर्ग की फटी जेब की व्यथा
कोई -कोई ही सुन पाता है
नित नव सपनों के पैबंद वो लगा
फटी जेब को सिल पाता है
शिक्षा के अभाव में वो जहाँ
मात सभी से खाता है
सुविधाओं का भी लाभ सदा
वो सब ओर से पाता है
लिये दो वक्त की रोटी का मसला
बन आश्रित जीवन बिताता है
उच्चवर्ग की फटी जेब भला
कहाँ कोई देख पाता है
शानौ-शौकत पर ही जो सदा
पैसा बेहिसाब बहाता है
एक चीज की जगह वो जहाँ
चीजें दस-दस मँगवाता है
अपने रूतबे के लिए वो वहाँ
कर्ज़ बैंको से उठाता है
शेयरों की उठा पटक संग सदा
जीवन अपना बिताता है
मन में यदि सन्तुष्टि न हो तो
जेब कहाँ सिल पाएगी
ऐसा ही होता रहा यदि तो
जेब फटी ही रह जाएगी।
