"उम्मीद"
"उम्मीद"
प्रेमांकुर को रोपित किये
कितने ही सावन बीत गए
हरे -भरे से सब पात नये
पतझड़ में सब रीत गए
वसंत के सजीले स्वप्न नये
दर्द की लू में झुलस गए
शीत पवन के तीव्र झोंके
दर्द को हवा दे चले गए
मेरे दिल के वृक्ष पर लगे
तुम्हारी यादों के पत्ते नये
एक-एक करके झड़ने लगें
सब ख्वाब टूट कर दिल के
यूँ टुकडो में न बिखरने लगें
इससे पहले आखिरी पत्ता गिरे
दिन काट रहे हैं उम्मीद लिए
लौट कर आओगे मेरे लिए।