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V. Aaradhyaa

Abstract

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V. Aaradhyaa

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जिस्म औ रूह को तफत ना करना

जिस्म औ रूह को तफत ना करना

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काश , वो कभी मुझे याद करते हुए,

मेरी कमतरी व अधूरापन भूल जाते !

मेरे जिस्म औ रूह को तफत ना करते,

और मेरे वज़ूद को मुझे पूरा याद रखते !


         आज जिंदगी में उम्मीदों के उजाले होते,

         अगर जो हमने सारे रिश्ते संभाले होते !

         चंद खुशी के लिए हमने गम ए हयात को,

         काश हम अपने घर से ना निकाले होते !


दौरे सफर में यह होना था इक रोज,

रास्ते दुश्वार और, पांवों में छाले होते !

कहीं से तो आए तो संभल जाएं ज़रा,

इस बात पर कई काम ना टाले होते !


          वो हमें ठीक से परख लेते तो कभी,

          हम भी उन्हें ठीक से, देखे भाले होते !

          संग ए राह के मानिंद पड़े रहते, अगर,

          दिल पर न कभी इतने, कसाले होते !


उसकी मोहब्बत का जुनून ऐसा कि,

हम डूबते भी और उतराए भी होते !

उसकी बेवफाई ही ले डूबी जां मेरी,

पर दुनिया को साबुत नज़र आए होते !



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