दीपक
दीपक
हर उजाले का आशय सत्य है
सत्य उजाले में चमकता है
हर मुश्किल से टकराता है
उजाला हर दीवार चीर जाता है
हर अन्याय को दिखलाता है
हर पत्थर से टकराता है
उम्र हमेशा काम पता है
लौट कर फिर जल्द आता है
उम्मीद की किरण चमकता है
हर आंधी से यह दीपक टकराता है
इसका कोई मोल नहीं
जो ले ले प्रण शत्रु का कोई अस्तित्व नहीं
खुशहाली को यह दमकता है
हर चेहरे का नकाब दिखता है
खुद अंधेरे में रह जाता है
जग को रोशन कर जाता है
कोई दीवार इसको ना रोक सके
इसकी चाला पर कोई वश नहीं
इसकी चमक से शत्रु भी डर जाता है
महान इससे रोशन हो जाता जग में
आसमान भी लहराता है
जब उजाला उजाले से टकराता है
काला पानी बह जाता है
सत्य दीपक बनकर रह जाता है