अनछुए पन्ने
अनछुए पन्ने
कुछ अनछुए पन्ने हैं ज़िंदगी के
ना कभी आपने पढ़े और ना कभी हमने खोलें
बस अनसुलझी हैं थोड़ी ज़िंदगी
ना कभी आपको वक्त मिला
ना कभी हमने कोशिश की
थोड़ी गुजरी हैं थोड़ी बाकी हैं ज़िंदगी
अब मायने नहीं कुछ उसे जंजोलने के
चलने दो इस बेरुखी सी ज़िंदगी को ऐसे ही
अनजानों के संग।
