बसंत
बसंत
फूलों की रंगोली सजी पत्तों की वंदनवार,
सुशोभित हो गया वन देवी का दरबार।
मां शारदा का अभिनंदन कर रही धरा,
सरसों, धान गेहूं रत्नों से सज रही धरा।
आया है ऋतुराज मित्र अनंग को ले संग ,
आया है यौवन धरा पर खिले अंग अंग।
खुशगवार हुआ मौसम खुश हैं फिजाएं,
महके गेंदा, गुलाब सुवासित सभी दिशाएं।
पवन बसंती शीतल मंद सुगंध बह रही,
शरद हुई विदा शिशिर करवट ले रही।
श्री कृष्ण बन बसंत धरा पर उतरे हैं,
प्रकृति के रूप पल्लवित हो निखरे हैं।
आम्रमंजरी दिला रही आमों की याद,
ईश्वर जैसे बांट रहा है विविध प्रसाद।
हर डाल नई कोंपलें नई कलियां ,
चूमते फिरते हैं भंवरे, तितलियां।
खेतों में पीली सरसों सरसाई है,
आम्रमंजरी देख कोयल हर्षाई है।
आया है कैसा अजब अलबेला मेहमान,
पहन कर फूलों के रंग बिरंगे परिधान।