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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

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सफर बीत रहा हैं

सफर बीत रहा हैं

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जिंदगी का लम्बा ये सफर बीत रहा है

हर साँस एक सज़ा है मगर कट रहा हैं


बेचैन आसमान के आगोश में 

 अपनी तमन्नाओं हस्र बुरा हो रहा है।


उनके छत से आज भी ईंटें गिरी है

आशियां भी किसी के काम आ रहा है।


आवाज तो हमारी अपनों ने छीन ली

कुछ परायों का फर्ज याद आ रहा है।


दो चार हादसों से ही अख़बार भर गए

हम अपनी उदासी की ख़बर काट रहे हैं


हर गाँव पूछता है मुसाफ़िर को रोक कर

हमने सुना है हमको नगर काट रहे हैं


इतनी ज़हर से दोस्ती गहरी हुई कि हम

ओझा के मंत्र का ही असर काट रहे हैं


कुछ इस तरह के हमको मिले हैं बहेलिये

जो हमको उड़ाते हैं न पर काट रहे हैं।




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