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Gayatri Kalkal

Abstract

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Gayatri Kalkal

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मेरी राखी

मेरी राखी

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बचपन से ही सुनती थी राखी है भाई बहन का प्यार। 

हर राखी सोचती थी भाई आ जाए इस बार।

मां कहती थी बेटा ईश्वर सुन लेते हैं बच्चों की पुकार।

राखी के लिए ईश्वर से भाई मांगों बारंबार।

भोला मन था सोचा करूं प्रार्थना,

शायद भाई आ जाए इस बार।

परंतु प्रभु बेचारा किस किस की सुने,

उसे क्या पता बाल मन ने क्या सपने बुने।

बचपन से ही इसी प्रकार मैं राखी मनाती रही।

पापा को भाई मानकर राखी मेरी बंधती रही।

पापा ने निभाए सारे फर्ज़, इस जीवन पर है उनका कर्ज़।

पर जो सुना था वो कर गया घर

कि राखी है भाई बहन का प्यार।


पर क्या उसके बिना मेरी राखी है बेकार।

क्या मुझे नहीं है राखी मनाने का अधिकार?

प्रभु का धन्यवाद जो इतना अच्छा घर एवम् वर दिया।

परंतु एक कमी ने आंखों को अश्रु से भर दिया।

यही है मेरी राखी और रक्षाबंधन का त्यौहार।

जो आता है और दिल को चुभकर एक सवाल छोड़ जाता है।

क्यूं रक्षाबंधन की रीत को ऐसे समझाया जाता है?

क्यूं हर बार नारी का मन दुखाया जाता है?

कितनी मेरी जैसी बहन बेचारी होंगी?

भाई की राह तक तक कर हारी होंगी।

उनको भी मुबारक हो राखी का त्यौहार।

उनको भी मुबारक हो राखी का त्यौहार।



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