क्या सोचा और क्या पाया?
क्या सोचा और क्या पाया?
क्या सोचा और क्या पाया?
कोरोना का जब समय आया।
लॉकडाउन में घर में लॉक हुए।
होटल, थिएटर, शॉपिंग मॉल सब बंद हुए।
घर में बैठे बोर हुए, रसोई में खड़े- खड़े ऊब गए।
सोचा था छुट्टी मनायेंगे , कहीं तो घूम कर आयेंगे।
पर क्या पता था घर में यूं बंध जायेंगे।
मास्क लगा- लगा कर थक गए।
सामाजिक दूरी बना - बनाकर पक गए।
अब तो कोई इससे पीछा छुड़ाए।
कोरोना से हमें बचाए ।
अपने सारे रहे सुरक्षित, जीवन हो जाए दोबारा सुव्यवस्थित।
यही कामना है भगवन ऐसी बीमारी फिर ना आए।
दोबारा अपने सारे त्यौहार खुशियों से मनाएं।
छुट्टियां भी खुशी से बिताएं।
पर अभी तो घूम रहा है यह विचार क्या सोचा और क्या पाया?
