क्या करूँ मैं निंदा पर की, अपने ही जब वक्त बदलते। क्या करूँ मैं निंदा पर की, अपने ही जब वक्त बदलते।
अगर प्यार इसे कहते हैं तो, “इमोशनल अत्याचार “की परिभाषा क्या है। अगर प्यार इसे कहते हैं तो, “इमोशनल अत्याचार “की परिभाषा क्या है।
इस दकियानूसी परीक्षा को देते रहेगे खुद की इज्जत को इस दकियानूसी परीक्षा को देते रहेगे खुद की इज्जत को
क्या तुम्हें मेरी कमी बिलकुल नहीं खलती है ! क्या तुम्हें मेरी कमी बिलकुल नहीं खलती है !
उसके बारे में सोच हासिल ही क्या ? जो वक़्त हाथों से निकला, चला गया। उसके बारे में सोच हासिल ही क्या ? जो वक़्त हाथों से निकला, चला गया।
फ़िर न बसा दिल में कोई तेरे बाद अजय शायद इसे ही कहते बंदगी है। फ़िर न बसा दिल में कोई तेरे बाद अजय शायद इसे ही कहते बंदगी है।