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manisha sinha

Abstract Tragedy

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manisha sinha

Abstract Tragedy

इमोशनल अत्याचार

इमोशनल अत्याचार

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प्यार में मेरे, चाँद तारे लाते हो।

बिना बात पर्वतें झुकाते हो।

बला की फुर्ती दिखाकर तुम,

हवाओं का रूख तक मोड़ आते हो।

मगर जो माँग लिया ,पीने को पानी,

फिर, बुत बनकर तुम जम जाते हो।


बड़े बड़े हो वायदे करते।

सपनों की दुनिया में हो रोज़ विचरते।

सिर्फ़ तुम्हारा हूँ और सदा रहूँगा,

कहते हुए कभी नहीं थकते।

मगर रात देर से आने पर,

जो पूछ दिया कहाँ थे तो

बातें लाख बनाते हो,

मुझे गोल गोल घूमाते हो।


जो डाँट दिया मैंने बच्चों को

तुरंत उनसे प्यार जताते हो।

मुझे तुरंत दस बात सुनाकर

उनके हीरो बन जाते हो।

मगर जो कह दूँ ,आज से इनको

तुम रोज़ पढ़ाना शुरू करो।

चेहरे की रंगत तुरंत तुम्हारी

फीकी पड़ने लगती है।

क्या क्या करूँगा एक अकेला मैं

की धुन बजने लगती है।


जो मेरा है ,सब तुम्हारा है।

तुमसे क्या मुझे छुपाना है।

चीज़ों की क़ीमत क्या है अब,

खुद मुझपर हक़ तुम्हारा है।

मगर जो मैंने पूछ दिया ,

तुम्हारे फ़ोन का ,पासवर्ड क्या है ?

उसी वकत ना जाने कैसे,

जरूरी काम तुम्हें याद आ जाता है।

नहाने भी हो जाना तो,

फोन साथ ही जाता है।


काम ना इतना किया करो तुम,

बेकार परेशान होती हो।

बैठा करो पास आकर मेरे,

जाने कहाँ, तुम खोई रहती हो।

ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें,

तुम्हें खूब बनानी आती हैं ।

मगर जो मैंने बोल दिया,

क्या, खाना आज बना दोगे!

फिर ,खानें की मेरी तारीफ़ें कर

मुझझे ही बनवाते हो।

लेकिन खाते खाते भी तुम,

कमियाँ ज़रूर गिनाते हो।


ऐसी ऐसी और ना जानें,

अनोखी,कितनी तुम्हारी बातें हैं।

कहते हो प्यार बहुत हूँ करता,

पर, मुझ पर हुक्म चलाते हो।

अंजान थी अब तक ,इन बातों से

होश में अब मैं आई हूँ।

अगर प्यार इसे कहते हैं तो,

“इमोशनल अत्याचार “की परिभाषा क्या है?


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