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manisha sinha

Abstract

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manisha sinha

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हर ज़ख़्म की दवा

हर ज़ख़्म की दवा

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असफल आँखों में ये 

भविष्य के सपने देता  है।

नाउममीदी के आलम में ये

आशा के ज्योत जलाए रखता है।


मुश्किल घड़ियों में ये सबके

उम्मीद को ज़िंदा रखता है।

जो अपनों से हाथ ना मिल पाए

नए रिश्तों का जज़्बा देता है।


ख़ामोशी से ये अपनों को 

भरपूर परखता जाता है।

अच्छे बुरे ये दिन दिखाकर

नक़ाब उठाता जाता है।


कितना भी कोई ज़ोर लगा ले

कोई इससे जीत ना पाता है।

पर यह भी बारी बारी सबके

सौग़ात ज़रूर ही लाता है।


अंधकार में विचलित मन जब

चिंता में डूबा जाता है।

फिर इसका पहिया घूमघूमकर

सूरज नई उगाता है।


धूमिल होती आरज़ुओं में

एक नई विश्वास देता है।

अकेले चलने का हौसला देकर

भीड़ में एक पहचान देता है।


बेबसी में ये अपनों की

दुआओं को साथ रखता है।

कड़वी होती रिश्तों में ये

बीते कल की मिठास रखता है।


ये वक़्त है जो अपने संग

हर ज़ख़्म की दवा रखता है।


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