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manisha sinha

Tragedy

4.9  

manisha sinha

Tragedy

कश्मकश

कश्मकश

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दिल की ख्वाहिशें लिए ,

सपनों की उड़ान,

फिर हक़ीक़त का सामना ,

और सवालों की ये कश्मकश।


सही ग़लत की तकरार,

राहों की ये उलझन,

फिर बिगड़ते हालात,

और ,बेबसी की ये कश्मकश।


थक कर बैठ जाना ,

या बिन परवाह दौड़ जाना,

फिर दुनियादारी की जकड़न,

और मन की ये कश्मकश।


किसी साथी की तलाश में,

यूँ रूह का छटपटाना,

फिर भीड़ के आग़ोश में

तन्हाई की ये कश्मकश।


सही वक्त के इंतेज़ार में,

मायूस सा हो जाना ,

फिर भूत भविष्य की साज़िश,

और आज की ये कश्मकश।


नाउम्मीदी की राह छोड़,

किया खुद पर ही विश्वास,

फिर कश्मकश के बंधन से,

दिल की धड़कने हुईं आज़ाद।


आरज़ुओं के सैलाब का,

फिर हर बाँध तोड़ जाना,

मिला परायों का भी साथ,

जब थामा स्वयं ने स्वयं का हाथ।


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