माँ बनते ही सब बदल गया
माँ बनते ही सब बदल गया
अधीर सी हो जाती थी जो
हर छोटी छोटी बातों में
आज मुझे हर हाल में
धीरज रखना आ गया।
बेफ़िक्र, बेलगाम सी जो
जीवन की ये राहें थी।
आज मुझे हर मोड़ पर
रुक-रुककर चलना आ गया।
हर हाल में खुद को जैसे
आगे रखना चाहत थी।
अब खेल में भी जान बूझकर
हारना मुझ को आ गया।
आँखों में नींदों का चाहे
समुंदर कितना गहरा हो।
अब मुझ को सारी रात भर
जाग कर काटना आ गया।
दुनियादारी के चक्कर में
बस भागती दौड़ती रहती थी।
आज उस नन्ही बाँहों ने
मुट्ठी में मुझ को थाम लिया।
दो पाँव के बजाये अब
चार पाँव पर चलती हूँ।
खूब सजती और सँवरती थी
अब थकी थकी सी रहती हूँ।
अपनी किसी भी चाहत की अब
हमको कोई खबर कहाँ,
नन्ही होठों के मुस्कान के लिए
अब जीती हूँ, मैं मरती हूँ।