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manisha sinha

Romance

4.5  

manisha sinha

Romance

प्यार का द्वन्द्व

प्यार का द्वन्द्व

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197


तुम्हें बदलने की कोशिश में

तुमसे दूरी बना बैठे।

इस प्यार के द्वन्द में हम तो

खुद ही खुद को हरा बैठे।


समझा नहीं ये दिल तुम्हें ना

गिला ही तूने मुझसे की।

और मैंनें भी तेरे धड़कनों को

सुनने की कोशिश तक ना की।


बेपरवाही मेरी अक्सर तेरी

आँखों से छलक ही जाती थी।

और मैंनें भी उन नम आँखों को

पढ़ने की कोशिश तक ना की ।


पर क्या मेरी उस बेरुख़ी की

अब इतनी बड़ी सज़ा दोगे ।

माना ख़ता हुई है पर क्या 

तुम ऐसे मुझे भुला दोगे?


मैं जानता हूँ मुझे सज़ा दे

तुम ना चैन से रह पाओगे ।

बदले की इस ज्वाला में

तुम भी तो जलते जाओगे ।


है वचन ये मेरा तुमसे कि मैं

तुम्हें तुम सा ही अपनाऊँगा ।

ना बदलूँगा तुम्हें थोड़ा भी

सिर्फ़ तुमसे प्यार निभाऊँगा ।


तुम भी अब ये वचन है दे दो

फिर से मेरी बनकर रहोगी ।

सारे गिले शिकवे भुलाकर 

लौटकर तुम वापस आओगी।


है इंतज़ार इस दिल को तेरा

बस बाँहों में तुम आ जाओ ।

मेरी नादानी की ख़ातिर 

ना छोड़ कर ऐसे तुम जाओ।

    


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