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manisha sinha

Abstract

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manisha sinha

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एक कोशिश

एक कोशिश

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अपनी ही तरह बनने की

अब हसरत लिए हुए

औरों की नक़ल करने की

ज़िद्दोजहद छोड़ दी है।


चाँद तारों तक मेरी

पहुँच रहे या ना रहे।

दीपक से घर को

रोशन करने की

सबक़ सीख ली है।


आइने को मेरा अक्स

भले ही ना याद हो।

तेरे आँखों में खुद

को सँवारने की

अदा सीख ली है।


अनदेखा करता आया था मैं

जिन राहों को अबतक।

हर उस मोड़ पर रुकने की

वजह ढूँढ ली है।


अब क्या भला ज़िंदगी

डरा सकेगी मुझको।

मौत से इश्क़ करने की

अब क़सम ले रखी है।


अपनी ही तरह बनने की

अब हसरत लिए हुए।

औरों की नक़ल करने की

ज़िद्दोजहद छोड़ दी है।


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