वक़्त
वक़्त
जो सबक पाठशाले में न पढ़ाया गया,
वक़्त ज़िन्दगी में सिखाता चला गया।
ज़िन्दगी जिस राह मुड़ती चली गई,
मैं भी उस रास्ते बहता चला गया।
कुछ तो कमी कहीं कोशिशों में थी,
कहीं नसीब गुल खिलाता चला गया।
वक़्त रहते हम वो समझ ही न सके,
वक़्त जो साज़िशें रचाता चला गया।
उसके बारे में सोच हासिल ही क्या ?
जो वक़्त हाथों से निकला, चला गया।
वक़्त के हसीं लम्हे चखा भी ‘अभि’ ने,
और उसके ज़ख्म भी सीता चला गया।