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अभिषेक कुमार 'अभि'

Inspirational

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अभिषेक कुमार 'अभि'

Inspirational

'व्हाइट कोट'

'व्हाइट कोट'

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जब दुनिया भर में पड़ी विपत,

जब बिगुल बजा आया संकट;

तब हुआ अग्रसर लिए शपथ,

फिर खड़ा हुआ संघर्ष के पथ।

कोविड महामारी से लड़ने 

की चुनौती यूँ अपनाता हूँ,

मैं व्हाइट कोट में आता हूँ।


अन्तरिक्ष यात्रि जैसे हों पृथक,

पोशाक डाल कर चला अथक;

व्याकुलता-श्वेद से हो लथपथ,

रहूँ लगा, करूँ सेवा मैं डट।

अपनों से न मिला दिनों दिन पर,

मुस्कान शक़्ल पर लाता हूँ;

मैं व्हाइट कोट में आता हूँ।


मंदिर मस्ज़िद लटका ताला,

घर से निकला लटका ‘आला’;

वो कहने लगे ईश्वर का रूप,

जो बतलाते रहते थे कुरूप!

पाकर वापस मैं बिसरी छवि,

कृतज्ञभाव इतराता हूँ;

मैं व्हाइट कोट में आता हूँ।


पत्थर, गाली और थूक मिले,

जग तिरस्कार भी खूब मिले;

उपचार निदान के जरिया में,

जोखिम भी जान पे रोज़ बने।

लोगों को बचाते प्राण अपने,

अब दाँव पे रोज लगाता हूँ;

मै व्हाइट कोट में आता हूँ।


सीमा पे सैनिक हो जो अमर,

प्रतिकर, ईनाम, उपाधि हो सर।

जो हुआ शहीद इस दौर अगर,

क्या मुझको मिलेगा यही मग़र?

गुमनाम भी हो परिवार को

पीछे छोड़ बिलखते जाता हूँ;

मैं व्हाइट कोट में आता हूँ।



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