नाम का रहा
नाम का रहा
रिश्ता उनसे फ़क़त अब नाम का रहा,
मैं भी कहाँ आदमी अब काम का रहा।
चुरा ही लेते हैं मिलतीं हैं जब भी नज़रें,
हों रूबरू,बस वास्ता सलाम का रहा।
साथ चले थे हमसफ़र बन तुम जो हमारे,
सफ़र अपना बड़े ही आराम का रहा।
कल गुफ़्तगू ठीक तुमसे हो न सकी हाँ,
मिलने का वादा पर कल शाम का रहा।
जब भी मिल बैठे दो यार हम ज़ख़्मी,
महफ़िल मौसिक़ी, बादा ओ जाम का रहा।
छिड़ गई जंग टीवी पे फ़साद रहा फैला,
बाहर माहौल ख़ुशनुमा आवाम का रहा।
राहत मिलती है अमन में जींद को मगर,
ख़्याल हमें कब पीर के पैग़ाम का रहा।
कितने ग़म उठाए हों ‘अभि’ ने भी मगर,
रुख़ पे तो हँसी गुल ए गुलफ़ाम का रहा।