'तूफ़ान हो गया'
'तूफ़ान हो गया'
दुनिया के रंग ढंग पे हैरान हो गया,
ग़म ए ज़िन्दगी के मारे परेशान हो गया।
रोज़ी की रोज़ फ़िक्र में फिरता कहाँ कहाँ,
अपने ही घर में यूँ लगे मेहमान हो गया।
जीने की जद्दोज़हद में यूँ लूट मार है,
इंसाँ चला था बनने मैं शैतान हो गया।
‘ज़मीं’ हुई नसीब न बेंचा ज़मीर भी,
तेरी क़ाबिलियत का मैं क़द्रदान हो गया।
तूने भी क्या ये कह दिया अपने बयान में,
इक था हवा जो उठ रहा तूफ़ान हो गया।
सियासी बवाल पोसने का क्या रहा सबब,
हक़ीक़त तो है वतन पे वो क़ुर्बान हो गया।
एक रोज़ सुब्ह जागूँ, देखूँ के वो आया,
औ यक़ीं हो जाए ख़ुदा मेहरबान हो गया।
रिश्तों में चाशनी रहे क़ायम, मेरा मिजाज़,
सब जानते हुए भी मैं अंजान हो गया।
साक़ी की देखनी हुनर थी मैक़सी पे शब,
माहिर हूँ पीने में मगर नादान हो गया।
जज़्बात ए इश्क़ ईमान से रोका बहुत मगर,
कमबख़्त जज़्ब ए हुस्न से बेईमान हो गया।
मशरिक़ हो या के मग़रिब हरसू है तू ही तू,
तासीर तेरा ही दीन ओ ईमान हो गया।
बस तू रहे जो यार ‘अभि’ का जिगरी हमसफ़र,
फ़िर क्या है वो फ़क़ीर से सुल्तान हो गया।