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kacha jagdish

Abstract

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kacha jagdish

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पंख

पंख

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आज शाम खड़ा हुआ 

खिड़की पर 

सामने है एक पेड़ 

पेड़ के डाल पर घोंसला 


उस में है चिड़िया का बच्चा 

पंख आये बीते हैं कुछ दिन 

पंख फड़फड़ाना सीखा नही 

आज है उसके उड़ान का दिन 


डाल पर चले डर के 

कभी घबराये 

कभी मुड़ जाये 

उसे डरा देखकर

डर लगे मुझके


पंख फड़फड़ा के उडा़ वो 

चिल्ला के बोल मैं 

अररे, जरा संभाल के 

बिना डरे उड़ गया 

डर के मारे कांपता रह गया मैं ।


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