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kacha jagdish

Abstract

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kacha jagdish

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मेरा दुल्हा

मेरा दुल्हा

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हमारी दिल की सूनी हवेली में

रहती अकेली यादें तुम्हारी

बदलते मौसम की यह जो पहेली

किसी की समझ में कहाँ

मिला महबूब चाहनेवाला

हाथों में लिखा मेहंदी से नाम उसका

सजी है आज दुल्हन तुम्हारी

हाथों में लिये फूलों के हार

इंतजार था कबसे उसके दिलबर का

आज दिखा है दुल्हे के रुप में जो।


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