STORYMIRROR

Sweta Sardhara " શ્વેત "

Abstract

4  

Sweta Sardhara " શ્વેત "

Abstract

घर से निकलते हैं...

घर से निकलते हैं...

1 min
254


हम इतिहास को जान के घरसे निकलते है

जो करना है वो ठान के घरसे निकलते है


ना मिल जाये बनावटी के लोग राह पर कही

हम खुदको जरा पहेचान के घरसे निकलते है


बस एक यही तय है, की तय कुछ भी नहीं

है यही हकीकत, मान के घरसे निकलते है


मां का विश्वास और पापा का अभिमान हम

खुदका आत्मसम्मान बन के घरसे निकलते है


अक्सर लोग तुम्हे शायर कहते है " श्वेत "

ये सुनकर सीना तान के घरसे निकलते है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract