घर से निकलते हैं...
घर से निकलते हैं...
हम इतिहास को जान के घरसे निकलते है
जो करना है वो ठान के घरसे निकलते है
ना मिल जाये बनावटी के लोग राह पर कही
हम खुदको जरा पहेचान के घरसे निकलते है
बस एक यही तय है, की तय कुछ भी नहीं
है यही हकीकत, मान के घरसे निकलते है
मां का विश्वास और पापा का अभिमान हम
खुदका आत्मसम्मान बन के घरसे निकलते है
अक्सर लोग तुम्हे शायर कहते है " श्वेत "
ये सुनकर सीना तान के घरसे निकलते है।