स्वच्छंद रचना-'इजाज़त'
स्वच्छंद रचना-'इजाज़त'
यहाँ प्यार करने की इजाज़त नहीं है,
मुहब्बत से बढ़के भी इबादत नहीं है।
हिम्मत करे जो, पहरे मुसीबत नहीं है,
कर ले रूह क़ैद ऐसी इमारत नहीं है।
फरमाना ज्यादती बस हुक़ूमत नहीं है,
मना ख़ैर के अब तक बग़ावत नहीं है।
सितम दर्द झेले, कुछ ख़िलाफ़त नहीं है!
ज़ुल्म की नज़र अंदाज़ी शराफ़त नहीं है।
समझना न लड़ने की हिम्मत नहीं है,
मुस्तैदी हो मुकम्मल, मोहलत नहीं है।
जिहादी(फ़ौजी) पे मातम की ज़ुरूरत नहीं है,
शहादत हुई है कोई मैय्यत नहीं है।
इससे भी बेहतर कोई क़िस्मत नहीं है,
रुक़सत का वक़्त आया दहशत नहीं है।
हिमाक़त करें वल्द ये रवायत नहीं है,
वालिदैन से भी ऊँची ज़ियारत नहीं है।
दिल फ़रोशी में क्यूँकि रिआयत नहीं है,
जिस्मों की हो नीलामी तिजारत नहीं है।
क़ुर्बत में भी शिरक़त की फ़ुर्सत नहीं है,
मैं हूँ बेमुरव्वत, ये हक़ीक़त नहीं है।
उल्फ़त में दूरी है, फुरक़त नहीं है,
बेवफ़ाई मेरी तो फ़ितरत नहीं है।
तस्करी कोई कर ले ज़ुर्रत नहीं है,
मैं लेटा हुआ हूँ बस, ग़फ़लत नहीं है।
कैफ़ियत है पूछी तुझसे अदावत नहीं है,
लब अपने खोल भी ये अदालत नहीं है।
ग़ैरों से सोहबत हमपे इनायत नहीं है,
मग़र फिर भी तुमसे तो शिकायत नहीं है।
शरारत करो तुम आनी शामत नहीं है,
प्यार ही उमड़ता है नफ़रत नहीं है।
कैसे समझ लें कोई आफ़त नहीं है,
के अस्मत ये जब तक सलामत नहीं है।
लियाक़त नहीं है तो क़ुव्वत नहीं है,
नसीहत बिना तो होती लियाक़त नहीं है।
ये हरक़त तेरी पाक़ नीयत नहीं है,
इस फ़िराक़ ही शायद बरक़्क़त नहीं है।
ये माना के अपनी अच्छी सूरत नहीं है,
अहल ए वफ़ा से कम भी सीरत नहीं है।
जेब तो है खाली, ऐसो दौलत नहीं है,
मग़र ज़ीस्त में सुकूँ है, दिक़्क़त नहीं है।
जन्नत ए हराम की तो मन्नत नहीं है,
जमानत कोई उठाए मिन्नत नहीं है।
रियासत हो हासिल ये हसरत नहीं है,
सितारा हुआ ‘अभि’, क्या शोहरत नहीं है?