कैदी बन कर रहना..
कैदी बन कर रहना..
जितना कहूं फिर भी न हो पाएगा बयां
मेरेे जन्म से लेकर अब तक की दास्तां,
फिर दुनिया कहती है वो जो देखती है
चेहरा देेख कर वो आंखें नहीं पढ़ती है।
शायद कभी कह भी ना पाएं किसी से
गम से लिखी किताब ही कुछ ऐसी हैै,
इसमें किताबे सस्ती लफ्ज़ महंगे होते हैं
लोगों के लिए हर किताब कहानी जैसी है।
मैं लिख नहीं पा रही कोई पढ़ भी ना पाए
गम का नहीं पता कि कब आए कब जाए,
ढूढ़े मन आशियाना कहींं अब दूर गगन में
साथ रहने वालेे जाने कब पिंजरा तोड़ जायेे।