आओ कभी पहाड़...
आओ कभी पहाड़...
जन्मभूमि है ये मेरी देवभूमि की
जहाँ धरती तप है ऋषि मुनि की
जहाँ की वायु शीतल मन बहाये
जिसके मन भाये वहीं के गीत गाये।
कौन सी वस्तु है जिसकी कमी है यहाँ
सब प्राकृतिक है कृत्रिम कुछ नहीं जहाँ
ऊंचा पहाड़ नीचे झरना तो सामने मैदान
स्वागत में सब खड़े हैं आपके सीना तान।
चेहरे पर आ जाती तब उसकी मुस्कान है
जिसे भी बताते हैं हम यहाँ की पहचान हैं
नतमस्तक है हर कोई इसके नाम में ही
ये सिर्फ प्रशंसा नहीं सच में हमारी जान है।