नन्ही गिलहरी....
नन्ही गिलहरी....
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मेरे घर की छत के ऊपर
आती थी रोज एक गिलहरी
लंबी पूँछ को अपनी लहराते वो
काली भूरी कुछ थी सुनहरी।
दो हाथों पर उठाकर खाना
चुगती रहती है अपना दाना
जब जब देखना होता पास
भाग कर जाती पेड़ की डाल।
पकड़ने की चाह की जब उसे
चुभाये नन्हें दांत उसने मुझे
हल्का रक्त निकल आया था
फिर उसे रोज हाथ में खिलाया था।