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Apoorva Singh

Abstract Inspirational

4.5  

Apoorva Singh

Abstract Inspirational

मंज़िल की ओर

मंज़िल की ओर

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तू चल रहा है ना तू चलता चल

जो फेंक रहे पत्थर तुझपे

फेंक लेने दे

तू तो बढ़ रहा है ना ?

तो बस बढ़ता चल।


तेरी तकलीफ से वाकिफ हूं रे 

पर इस दर्द को

चेहरे पर उभरने ना दे

शश श श श .........

तेरा मज़ाक उड़ाएंगे लोग 

छुपा कर रख दिल में

किसी को पता चलने ना दे।


तू मत खोना हौसला अपना

समय ही तो है ये भी गुजर जाएगा

जो रोक दिए चलते कदम तूने

मंज़िल छूते छूते रह जाएगा।

गर टपक पड़े आंसू कभी 

बह लेने देना इन्हे जी भर

जो लिया थाम इन्हे आंखों में ही

दिल सम्हाले ना सम्हल पाएगा।


ये वक़्त कठिन है जरूर

पर ये भी र

ुक कहां पाएगा

यहीं तो नियम हैं ईश्वर के

आज जो है वो कल पलट जाएगा।

इस यात्रा में तुझे

 है परखना हर शख्स को

कोई बन के चले साया तेरा

तो कोई थाली में छेद कर निकल जाएगा।


ये संघर्ष ये बुरा वक़्त 

एक गुरु के समान समझ

जो बन के निकलेगा तू इस दौर से

खुद को पहचान भी ना पाएगा।

जवाब ना देना उन चुभती बातों का

 ये बातें ये ताने ही तो

तुझमें जुनून भरेंगी

और फिर जब बात होगी

कभी कहीं कामयाबी की

अनजाने ही सही 

तेरा ज़िक्र निकल आएगा।


और तब तब तू अकेला ना होगा 

सारे रिश्ते वे नाते

सब लौट आएंगे 

जो फेर लेते थे नज़रें तक

देख कर तुझे मिलने को तरस जाएंगे।


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