STORYMIRROR

Apoorva Singh

Abstract

3  

Apoorva Singh

Abstract

माँ

माँ

1 min
233

माँ ही धरती

माँ ही आकाश है

माँ ही मंदिर

हर देवी का वास है


माँ ही पूजा

माँ ही इबादत है

है उसका साया जो

खुदा की इनायत है


कर लो कितने भी तीर्थ

हो आओ कितने भी धाम

सब के सब फिजूल हैं

टेक लो माथा उन चरणों में

उसकी हर दुआ कुबूल है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract