Apoorva Singh

Abstract

4.0  

Apoorva Singh

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पिता

पिता

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कितनी गाथाएं ना जाने कितनी महिमा

माँ पर इस संसार ने गायी हैं

राम को जन्मा भले कौशल्या ने

याद में तो दशरथ ने जान गंवाई है

वो माँ यशोदा का वर्णन जगजाहिर है

पर जान तो वासुदेव ने बचाई है

कैसे दरकिनार करे कोई इस रिश्ते को

बच्चों के सुख के लिए

जिसने धूप में खाल तपाई है


वो ना थकता है ना रुकता है

औलाद की एक मुस्कान के लिए

हर मुमकिन कोशिश करता है

बहुत मुश्किल हो जाता है

ऐसी शख्सियत को समझ पाना

अपना दर्द अपनी तकलीफ जिसने

मुस्कुराहट के पीछे छुपाई है


क्या खूब हिसाब है ईश्वर का

हर घर में कवच बनाया है

जो ना मुमकिन हो सकी उसकी मौजूदगी

हर घर में पिता बनाया है।


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