दिनकर की सवारी
दिनकर की सवारी
'दिनकर की सवारी'
नील गगन में दूर-दूर तक,
फैल रही है उजियाली,
धरती ने भी ओढ़ रखी है,
चादर जो है वन कि हरियाली।
घूम रहे नीचे आ-आकर,
रुई से बदल प्यारे,
उन पर भी पीली किरणों ने,
चमक सुनहरी बिखराई।
दूर रुपहले घने बादलों पार,
चमक ऊर्जा को बिखरता,
खड़ा दिवाकर रहा निहार।
देख सवारी दिनकर की,
प्रकृति ने भी ली अंगड़ाई।
प्रात हुई खग वृंद उड़े,
करने दिन भर का कार्य व्यापार,
चलो चले हम भी उड़कर,
बादलों के पार,
करने जीवन से अभिसार।
