बेवजह मुस्कुरा आए
बेवजह मुस्कुरा आए
आज कुछ कड़वी पुरानी यादों की पोटली,
गंगा में बहा आए
सखियों संंग गंगा में छपाक से डुबकी लगा आए।
बच्चोंं से उछलतेे -कूदते,फूलों सा मन,
महका आए
जीवन के मेले में,हर दु:ख-दर्द को,
बनाकर कागज की कश्ती,
बारिश में बहा आए
जब भी ढ़ूूंढा वजह मुस्कुराने की,
उलझ कर रह गए,
जरा सा
जिंदगी को यूं ही ,गले जो लगाया,
बेवजह ही खिलखिला आए
कल शाम देेखा था मैैंने,
मन की डाली पर,
इक नन्हीं सी कली,
आज ही भोर की लालिमा में,
इक सूरजमुखी खिला आए
क्यूंं हर पल फूलों से ही प्यार किया जाए,
चलोकाँँटों संंग भी,
जरा सा, इश्क लड़ा आएंं
हमने नहीं ढूंढा कभी
मंदिरों-मस्जिदों में,
ईश्वर औ खुदा को,
जीवन के सफर मेें जो भी मिला गमगीन सा,
चेहरे पे उसके,
इक छोटी सी फुलझड़ी,
खुशियों की जलाा आए।