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Kalyani Das

Romance

4  

Kalyani Das

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तेरी खामोशियां

तेरी खामोशियां

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तेरी खामोशियों में ढूंढती हूं,

अपने लिए कुछ अनकहे प्यार भरे शब्द।

जिसे दिल सुनना चाहता है तेरी जुबां से।

पर तुम्हारे पास मेरे लिए कोई शब्द ही नहींं,

या फिर नहींं कोई एहसास।

पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं

जानती हूं मैैं

तुम्हें बोलन जरा कम भाता है।

तुम्हारे हृदय पर एकक्षत्र राज मेरा, 

बस हंसती-मुस्कुराती-गुनगुनाती विचरती रहती हूं

तेरे हृदय की बगिया में।


बिन बोले भी समझती हूूं

तुम्हारी बिन आवाज की मधुुर बोली।

सारी प्रीत तो तुुुम नजर मेंं ही समा कर रखते हो।

पहचानती हूूं इसेे भी

तेरा कहीं से भी आकर पहले मुुझे 

इक नजर भर मुुझे देखना

बिन कहे ही सारा प्रेम उड़ेल देता है मुझपर।

सोचती हूूं


क्या कभी खामोशी भी इतनी

मुखर हुआ करती है ?

कहां से सीखा है तुमने 

बिना शब्दों के बोलना ?

क्या याद है तुम्हें वो दिन

जब थाम कर एक-दूजे का हाथ,

घंटों बैैठा करते थे

नदी किनारे यूं ही चुपचाप।

बस दोनोंं की खामोशियां मुुखर हुआ करती थीं।


तबसे लेकर आज तक 

हमदोनों ही समझ लेते हैं,

एक-दूजे केे मन को 

बिना कुछ कहे

फिर भी, कभी-कभी मन होता है मेरा,

तुम बोलो, कुछ भी

और मैंं सुनुं


पर,मैं बोलती हूं और तुम सुनते हो।

अपने शब्द नजरों से सुनाते हो

देखो न,

मैंने तेेेेरे प्यार को

शब्दों की माला में पिरोकर, 

अपनी कविताओं मेंं लिखा है।

चाहत है मेेेरी

तुम कभी तो पढ़ो इन्हेें

मैं रहूं न रहूं

तेरे लिए मेरा प्रेम 

शब्दों में बिंधकर

विचरता रहेगा इस जहां में।


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