बैठा हूंँ बनकर दरबान तेरे दर
बैठा हूंँ बनकर दरबान तेरे दर
बैठा हूंँ बनकर दरबान तेरे दर पे आंँखों में तेरा ही इंतजार समाया है,
किसी और के लिए जगह नहीं इस दिल में बस तुझे ही तो बसाया है,
बस एक बार तो निकल कर देख ले तू, उन तन्हाई की गलियों से,
सुन मेरी धड़कनों को, जिसने बस तेरे नाम का ही गीत गुनगुनाया है,
यूंँ ख़ामोश रहकर खुद को सज़ा न दे, कह दे अपने सारे गिले-शिकवे,
बदला नहीं है कुछ भी जो था, वही चेहरा आज भी यहाँ पेश आया है,
मेरे दिल की दहलीज पर रोशन है आज भी तेरी मोहब्बत का चिराग़,
मिल जाए तेरी मोहब्बत का नूर ये दिल यही फरियाद लेकर आया है,
मैं तो चला जा रहा था होकर बड़ा मायूस, मोहब्बत की इन गलियों से,
पर कोई अनजाना सा एक फरिश्ता तेरे दर पे फिर से खींच लाया है,
आखिर कुछ तो ईश्वर की है मर्ज़ी इसमें, उसी ने तो मिलवाया हमें,
लाखों की भीड़ है जहांँ दुनिया में, वहांँ हमसफ़र तुझे ही बनाया है,
जो तेरी मर्जी, तो यूंँ ही दरबान बना बैठा रहूंँगा तेरे दर पे उम्र भर,
बस एक बार मेरी आंँखों में तू देख तेरा ही चेहरा उसमें समाया है,
कोई ऐसा पल नहीं, है कोई ऐसी सोच नहीं, जब तेरा ज़िक्र न हो,
हर लफ्ज़ है मेरा नाम तेरा, तेरे नाम से ही तो ये लब मुस्कुराया है,
कहीं छूट न जाए सांँसो का बंधन, तुझे जीभर देखने से पहले ही,
कि आ भी जा इक बार ये दिल फिर मोहब्बत का पैगाम लाया है।

