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Pradeepti Sharma

Romance

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Pradeepti Sharma

Romance

तुम साथी,मैं संगिनी

तुम साथी,मैं संगिनी

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मुझे मोती की माला की चाह नहीं,

तू लहरों के चूमे हुए,

रेत में लिपटे हुए,

कुछ कोरे सीपी ले आना,

उन्हें पिरोकर एक हार बना लूँगी।

मुझे सोने के कंगन नहीं लुभाते कभी,

तू शहर के पुराने बाज़ार से,

कॉंच की रंग बिरंगी चूड़ियाँ ले आना।

मुझे रेशमी साड़ी नहीं पहननी,

तू सतरंगी सूती साड़ी ले आना।

मुझे चाँदी की पायल नहीं छनकनी,

तू दरगाह से मन्नत का धागा ले आना।

मुझे पकवान मिठाई नहीं खाने,

तू सड़क किनारे इन झाड़ियों से तोड़कर

एक टोकरी मीठे पके बेर ले आना।

मुझे काँसे के बर्तन नहीं खरीदने,

तू पड़ोस के कुम्हार से,

मिट्टी के कुछ बर्तन ले आना।

मुझे मेहेंगे इत्तर नहीं छिड़कने,

तू इस आँगन में मेहकते हुए,

मोगरा रजनीगंधा के पेड़ लगाना,

भोर की बेला में,

कुछ कलियाँ तोड़कर,

इन केशों को सजा देना।

मुझे इस घर को,

कीमती चीज़ों से नहीं सजाना,

तू दशहरे के मेले से,

लकड़ी की छोटी बड़ी आकृति ले आना।

मुझे कहीँ सैर पे दूर मत ले जाना,

पूनम की चाँदनी रात में,

झील में नौका विहार करा लाना,

सावन में छतरी ना सही,

शाम को बारिश में भीगते हुए,

निम्बू मिर्ची रचा हुआ,

कोयले पे सिका हुआ,

भुट्टा खिला आना,

मई की सुलगती गर्मी में,

गली में घूमते हुए,

उस बूढ़े फेरीवाले से,

बर्फ़ का गोला दिला देना,

दिसंबर की ठिठुरती ठंड में,

पुराने किले के बाहर बैठे,

उस छोटे से तपरीवाले से,

एक प्याला मसाला चाय पीला लाना।

मुझे मोटर गाड़ी में नहीं बैठना,

तू साइकल में बैठाकर,

मुझे खेत खलियान की सैर कराना।

मुझे गद्देदार शय्या में नहीं सोना,

खुली छत पर चटाई बिछाकर,

सितारों भरी रात में,

पूर्वय्या के मंद स्पर्श के साथ,

सुकून की नीन्द सुला देना।

बस यूँही उम्र भर साथ रहकर,

हर पल को ख़ुशनुमा,

और यादगार बना देना।



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