प्रेयसी
प्रेयसी
आम्र मंजरी
फूले पलाश
मधुर कुमकुम
ओस मिश्रित घास
प्रिय क्यों हो दूर
आओ पास
तुम बिन
ये मन उदास
बात बात में
जो बात हुई थी
वो बात नहीं
बतंगड़ था
तीखे मिठे
नोंक-झोंक का
माना कि
तुफां ए समंदर था
पर तोड़ दे
जनम जनम का
सारे रिश्ते नाते
वैसी कोई बात न थी
गौर करो
पुनर्विचार करो
दुनिया बहुत ही ज़ालिम है
मेरी गलती बताकर
तुझे बरगलायेंगे
बन सच्ची हितैषी
दिन में तारे गिनवायेंगे
तुम्हारे माथे पर
देख लकीर तनावों की
आहिस्ते कुछ और
जहर घोलेंगे
तुम टूटने लगोगी
और वो तोड़ने लगेंगे
फिर वो अपनत्व का
भाव दिखाकर
करेंगे वशीभूत तुझे
और मेरे ही दिये रूमाल से
पोंछ अश्रु कण
तेरे नयनों का
तोड़ेंगे और तुझे
मैं भूल चुका हूं
वो सारी बातें
तुम भी भूल जाओ
फिर से बन अनजान पथिक
आओ हम फिर से मिल जाएं
साथ बैठें कुछ बात करें
तुम जीत लो
या मैं हार लूँ
मैं जीत लूँ
या तुम हार लो
क्या फर्क पड़ता है
कौन हारा कौन जीता
पर बहुत फ़र्क पड़ेगा
कोई और जीत ले तुझे
या कोई हरवा दे मुझे
तू ही मेरी जिंदगी
तू ही मेरी आस
भरी है महफिल
पर कोई न मेरे पास
आम्र मंजरी
फूले पलाश
मधुर कुमकुम
पर मन उदास