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DEVSHREE PAREEK

Romance

4  

DEVSHREE PAREEK

Romance

फिर सोचती हूँ…

फिर सोचती हूँ…

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तेरे किए की शिकायत तो की जाए

फिर सोचती हूँ इस बहाने

कोई रिश्ता फिर से ना जुड़ जाए…

बड़ी मुश्किलों और कोशिशों से

समझाया है दिल को मैंने

फिर सोचती हूँ कोई राख में

दबी शरार फिर से ना सुलग जाए…

तेरी तो वही पुरानी आदत

रूठ जाना, मेरा मनाना, सिर झुकाना

फिर सोचती हूँ जिसकी मंजिल नहीं

क्यों ना वो सिलसिला टूट ही जाए…

एक ख़ला पाली है मैंने

अपने सीने के भीतर

फिर सोचती हूँ याद रहे ज़ख्म पुराने

क्यों ना ये ख़ला दिल में बसाली जाए…

मेरे खुदा ने आजकल

नज़रें ही फ़िराली हैं मुझसे

फिर सोचती हूँ सांस के साथ

उसकी खुशी दिल में सजा ली जाए.


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