ला-फ़ानी
ला-फ़ानी
हर गज़ल में मेरे होंगे ज़िक्र सिर्फ आपके
हर बज़्म में सुनाऊंगा मैं नज़्म सिर्फ आपके।
लिख जाऊँगा कुछ फसाने उल्फ़त के हमारे
मेरे रुख़सत इस दुनिया से होने से पहले।
सुनकर किस्से हुस्न-ए-अज़ली के आपके
महताब भी बेचैन होगा दीद-ए-हुस्न के आपके।
हुरूफ़-ए-दिल से लिख जाऊँगा कुछ अफ़्साने हमारे
शायद करोगे याद मेरी क़ज़ा के बाद मुझे इसी बहाने।
बन जाओगे ला-फ़ानी आप मिट्टी में भी मिल के
जब पढ़ेगा ज़माना किस्से मोहब्बत के हमारे।
है वादा इस फ़ानी 'मुसाफ़िर' का आपसे
अबद-तक याद रखेगी दुनिया फसाने आपके।