तुझे भुला ना पाया मैंं
तुझे भुला ना पाया मैंं
बनकर पत्थर तू तोड़ दे मुझे शीशे की तरह
राह मे तेरे मैं चलता रहूँगा मुसाफिर की तरह
चाहे तो आजमा लेना सब्र मेरा जब भी दिल कहे
दर से तेरे न लौटूँगा मैं बेरंग फरियादी की तरह
किया है प्यार तुझसे मैंने बड़ी फुर्सत मे
पता था कांटे ही आएंगे भरके मेरे दामन मे
हमे थी उम्र बितानी बस तेरी चाहत मे लेकिन
कट रही उम्र यहाँ प्यार की आजमाइश मे
कभी थी सिलवटें छोड़ी तूमने मेरे चादर पर
आज भी महसूस करता हूँ मैं करवटों को तेरी
अब भी बिखरे हुए है फूल तेरी गजरे के
है सूखे हुए मगर आती है उनसे खुशबु तेरी
धून्धली हुई नहीं याद अब तक उन गलियों की
जहां से गुजरती थी तू अपने दुपट्टे को सम्हाले हुए
गूंजती है आज भी आवाज़ तेरी हंसी की मेरी कानो मे
के नाम लेकर पहली बार जो पुकारा था तूने मुझे
भूल ना पाया हूँ मैं अब भी वो नजदीक से गुजर जाना तेरा
भागते हुए, उन आँखों से जो तूने समझाया था इशारों मे
गली थी तंग और संग थी सखियाँ तेरी
बड़ी ज़ोर से हंसी थी वो मेरे नाम से तुझे चिढ़ाते हुए
कभी काश उल्टा घूमे समय का पहिया
ले जाए हमे फिर से उन राहों पर
मैं खड़ा रहूँ किनारे पर तेरी राह तकते और
तू गुजरे मेरे पास से मुसकुराते हुए उसी रिक्शे पर
सम्हाले रक्खा हैं मैंने अब भी उन्हे सिरहाने में
लिखे थे खत जो तूने मुझे रिझाने को कभी
जवाब दे ना सका मैं तुझे लिखकर किसी भी का लेकिन
बचा कर रक्खा है मैंने अब तक उस जमाने को अब भी
कभी हूँ सोचता बैठा मैं अकेले मे
बताया क्यों नहीं मैंने फसाने दिल के अपने
समझ मे आया है ये अब जाके ये अरसो मे
मेरे थे ख्वाब बस तुझसे, तेरे थे अपने सपने।

