मैं हार गया तुम जीत गयी
मैं हार गया तुम जीत गयी
मेरे लब तक आते-आते कितनी सदियाँ बीत गईं ।
जाम न मेरा हो पाया मैं हार गया तुम जीत गई !!
ये नीर नयन के भेदी हैं हर बात दिलों की कहते हैं,
पत्थर को भी पिघलाते हैं जब भी आँखों से बहते है !
उन स्वप्नों का हर शीशमहल उस पल को चकनाचूर हुआ,
जब मेरी आँखों का आँसू तेरी धड़कन से दूर हुआ !
मैं आस लगाये खड़ा रहा तुम लेकर मुझे अतीत गई....
जाम न मेरा हो पाया मैं हार गया तुम जीत गई .......!!
मैं मुग्ध वसन में लिपटा था तुम लज्जा से इठलाई थी,
मैंने खुद को भी भुला दिया जब तुम ऐसे मुस्काई थी !
मैंने चाहा कुछ बात करूँ तुमने अधरों को रोक दिया,
इस हृदय सिन्धु की धारा को बहने से पहले टोक दिया !
मैं स्वप्न शयन पर लेटा था तुम चुपके-चुपके रीत गई....
जाम न मेरा हो पाया मैं हार गया तुम जीत गई ..........!
मेरे लब तक आते-आते जाने .............!!
ये साँसों के पखवाड़े भी विव्हल अतीत से बीत गये,
कुछ आँखों के श्रंगार स्वप्न करुणा की सत्ता जीत गये ।
फिर आज प्यास ने सागर को मन ही मन बहुत सताया था ,
ए'क मन्द हवा के झोंके ने पत्थर को बहुत रुलाया था ।
मैं सहज फलक ना धो पाया तुम हठ से नदियाँ सींच गयी ....
जाम न मेरा हो पाया मैं हार गया तुम जीत गयी...।
मेरे लब तक आते-आते जाने ...........॥