पत्नी और चाय
पत्नी और चाय
तुम भी ना
चाय जैसी हो
झट से उबाल आ जाता है
उबलते उबलते
बड़बड़ाती रहती हो।
गर संभालूं नहीं
तो सीमा तोड़ बिखर जाओ।
लेकिन मेरी आंखें भी न
सुबह होते ही
तुम्हें ही देखना चाहती है
वैसे ही...
जैसे चाय को।
तुम भी ना
चाय जैसी हो
झट से उबाल आ जाता है
उबलते उबलते
बड़बड़ाती रहती हो।
गर संभालूं नहीं
तो सीमा तोड़ बिखर जाओ।
लेकिन मेरी आंखें भी न
सुबह होते ही
तुम्हें ही देखना चाहती है
वैसे ही...
जैसे चाय को।